अनुलोम-विलोम प्राणायाम
अनुलोम-विलोम प्राणायाम (Alternate Nostril Breathing Exercise) नासिका के द्वारा
किया जाता है। यह एक आसान परंतु अत्यंत गुणकारी व्यायाम है। प्राचीन समय में ऋषि मुनि
अनुलोम-विलोम प्राणायाम अभ्यास के द्वारा अपनी कुण्डलिनी शक्तियां जागृत करते थे। अनुलोम-
विलोम प्राणायाम नासिका के छिद्रो को बारी बारी बाधित करके किया जाता है| इस प्रक्रिया में नाक
के दोनों छिद्रों में से एक को बाधित करके दूसरे छिद्र से सांस अंदर लेनी होती है, और फिर अल्प
समय तक उस सांस को शरीर के अंदर रख कर नाक के दूसरे छिद्र से सांस बाहर निकालना होता
है। और जब दूसरे छिद्र से सांस बाहर निकालें तब पहले वाले छिद्र को बाधित करना होता है।
Alternate Nostril Breathing Exercise
अनुलोम-विलोम प्राणायाम के निरंतर अभ्यास से ध्यान करने की शक्ति का अद्भुत विकास होता
है। इस गुणकारी प्राणायाम को करने के बाद शरीर में फुर्ती आती है और एक नयी ऊर्जा का संचार
होता है। अनुलोम-विलोम करने से मन प्रफुल्लित हो जाता है तथा मन में अच्छे विचार उत्पन्न होते
हैं। यह व्यायाम व्यक्ति में सकारात्मक विचारों का सर्जन करके, उसे आत्मविश्वासी बनाता है।
How To Do Anulom-Vilom Pranayama/Method of Alternate Nostril Breathing Exercise –
अनुलोम-विलोम प्राणायाम कैसे करें
समय(Time):
अनुलोम-विलोम प्राणायाम सुबह के समय सूर्योदय के पहले करना अति गुणकारी होता है। इस
व्यायाम को करने से पहले पेट साफ कर लेना चाहिए। अनुलोम-विलोम भोजन या नाश्ता करने से
पहले ही करना चाहिए। अनुलोम-विलोम कर लेने के बाद करीब एक घंटे के बाद ही कुछ खाना
चाहिए। अनुलोम-विलोम शाम के समय भोजन करने के पूर्व भी किया जा सकता है, लेकिन इस
प्राणायाम को सुबह में करने से अधिक लाभ होता है।
आसन(Asana) –
अनुलोम-विलोम प्राणायाम का अभ्यास किसी शांत वातावरण में करना चाहिए। अनुलोम-विलोम
स्वच्छ प्राकृतिक हवा में अधिक फलदायी साबित होता है। इसलिए सर्वप्रथम उत्तम स्थान का चुनाव
कर के, वहाँ एक चटाई बिछा कर सामान्य मुद्रा में स्थान ग्रहण करना चाहिए। बैठ जाने के बाद
अपने बाएं पैर को मौड़ कर दाईं जांघ पर रख देना होता है। और दायें पैर को मौड़ कर बाईं जांघ
पर रखना होता है।
शुरुआत –
अनुलोम-विलोम के लिए, ऊपर बताए अनुसार सही आसान जमा लेने के बाद अब, इस प्राणायाम
का अभ्यास सब से पहले बाईं नासिका से शुरू करना होता है। अब दाएं हाथ के अंगूठे से नाक के
दाएं छिद्र(right nostril) को बाधित (बंद) करना होता है। और इसी अवस्था में बाएं छिद्र द्वारा
धीरे-धीरे सांस शरीर के अंदर लेनी होती है।
सम्पूर्ण तरीके से सांस शरीर के अंदर लेने के बाद बाधित किये हुए दाएं छिद्र को मुक्त करना होता
है, और ठीक उसी के साथ, मध्यमा उंगली या अनामिका उंगली से बाएं छिद्र(left nostril) को
बाधित करना होता है। शरीर के अंदर भरी हुई सांस अब धीरे-धीरे दाएं छिद्र से बाहर निकालनी
होती है।
अनुलोम-विलोम प्राणायाम की गति एंव अवधि –
Speed and Duration of Anulom-Vilom Pranayama
व्यक्ति को अनुलोम-विलोम की शुरुआत हमेशा धीरे-धीरे सांस अंदर लेने और बाहर छोड़ने से
करनी चाहिए। और जब इस प्राणायाम का अभ्यास सहज होने लगे तब इसकी गति थोड़ी थोड़ी कर
के बढ़ानी होती है। अनुलोम-विलोम प्राणायाम करते समय एक चीज़ का हमेशा ख्याल रखना
चाहिए की जिस गति से सांस शरीर के अंदर भरें, उसी सामन गति से सांस शरीर से बाहर निकालनी
चाहिए।
गति(Speed) –
अनुलोम-विलोम प्राणायाम की श्वासन गति अधिक तेज़ करने पर शरीर के प्राण की गति तेज़ हो
जाती है। अनुलोम विलोम प्राणायाम में एक नासिका से पूर्ण रूप से श्वांस अन्दर लेने में 2.5 सेकण्ड
और फिर श्वांस वापस बाहर निकलने में 2.5 सेकंड का समय लगता है| इस प्रकार अनुलोम विलोम
की एक प्रक्रिया करीब 5 सेकंड में पूरी हो जाती है| इसी प्रकार एक मिनट में 12 बार अनुलोम
विलोम किया जाता है|
दाएं छिद्र से ली हुई सांस बाएं छिद्र से मुक्त करना, और बाएं छिद्र से ली हुई सांस दाएं छिद्र से मुक्त
करना। एक छिद्र बाधित, तब दूसरा छिद्र प्रवृत| दूसरा छिद्र प्रवृत तब प्रथम वाला बाधित। यह
प्रक्रिया मानव शरीर में एक शुद्धिकरण व्यायाम साइकल की रचना करता है। और इस क्रिया को
लगातार एक मिनिट करने से शरीर को थोड़ी थकावट महसूस होती है। थकावट महसूस होने पर
अनुलोम-विलोम प्राणायाम से थोड़ा विश्राम लेना चाहिए। और जब फिर से शरीर सामान्य अवस्था में
आ जाए तब फिर से अनुलोम-विलोम की शुरुआत करनी चाहिए।
अवधि(Duration) –
अनुलोम-विलोम प्राणायाम पहले दो से तीन मिनट करना चाहिए, और कुछ समय तक इसका
अभ्यास हो जाने पर इस व्यायाम को प्रति दिन दस मिनट तक करना चाहिए। अनुलोम-विलोम को
बिना रुके तीन मिनट या उस से अधिक समय तक लगातार करना हानिकारक हो सकता है
इसलिए बीच बीच में थोड़ा विश्राम लेना ना भूलें।
गर्मी के मौसम में अनुलोम-विलोम प्राणायाम
Anulom Vilom Breathing Exercise in Summer
वातावरण में जब अधिक गर्मी होती है, तो अनुलोम-विलोम प्राणायाम की समय सीमा घटा देनी
चाहिए। गर्मी के मौसम में अनुलोम-विलोम प्राणायाम तीन से पांच मिनट तक ही करना चाहिए।
अनुलोम विलोम के समय शिव संकल्प
Noble Resolution (Siva Sankalpa) During Anuloma Viloma
प्राणायाम न केवल शरीर स्वस्थ बनाता है बल्कि मन को भी शुद्द करके सकारात्मकता और
आत्मविश्वास प्रदान करता है| इसलिए प्राणायाम का पूर्ण रूप से लाभ लेने के लिए प्राणायाम करते
समय सकारात्मक संकल्प लेने चाहिए| अनुलोम विलोम करते समय सांस अन्दर भरते हुए यह
संकल्प लेना चाहिए कि मेरे भीतर सकारात्मक शक्ति का संचार हो रहा है और श्वांस बाहर छोड़ते
समय यह संकल्प लेना चाहिए कि मेरे भीतर मौजूद नकारात्मक प्रवृतियां बाहर जा रही है|
Benefits of Anulom Vilom Pranayama-
अनुलोम-विलोम योग के विभिन्न लाभ और फायदे
अनुलोम-विलोम प्राणायाम के रोज़ाना अभ्यास से मानव शरीर की समस्त नाड़ियाँ शुद्ध हो
जाती है। एक इन्सान के देह में कुल मिला कर 72000 नाड़ियाँ होती हैं।
शरीर की प्रत्येक नाड़ियाँ स्वस्थ और शुद्ध हो जाने से उनमे किसी भी प्रकार का संक्रमण या रोग
नहीं उत्पन्न हो सकता है और इसलिए शरीर कभी रोग ग्रस्त नहीं बनता है।
अनुलोम-विलोम प्राणायाम मानव शरीर की नाड़ियों को शुद्ध करने के साथ साथ उन्हे शक्ति भी
प्रदान करता है। नाड़ियों के सशक्त बनने से चिंता और तनाव (depression) दूर रहेता है।
प्रतिदिन सुबह में अनुलोम-विलोम प्राणायाम करने से शरीर में बैड कोलेस्ट्रॉल की समस्या नहीं होती
है। और अगर किसी व्यक्ति को पहले से ही यह तकलीफ हों, तो अनुलोम-विलोम करने से दूर हो जाती है।
अनुलोम-विलोम प्राणायाम से एच॰ डी॰ एल॰ और एल॰ डी॰ एल॰ की अनियमितता दूर हो जाती है।
तथा ट्रगिल्सराइडस की भी अनियमितता दूर हो जाती है।
अनुलोम-विलोम से मौसमी सर्दी और जुकाम दूर हो जाता है। लगातार नाक बहने की बीमारी और
श्वसन क्रिया से जुड़ी कोई भी जटिल बीमारी हों उसे दूर करने के लिए अनुलोम-विलोम प्राणायाम
एक सटीक इलाज है।
अनुलोम-विलोम योग के विभिन्न लाभ और फायदे
गले में सुखी ख़ासी हों, या गले में गांठ (tonsil), अनुलोम-विलोम इन दोनों समस्याओं में लाभदायी
होता है। पेट साफ ना आने की वजह से गले में या जीभ में छोटे छोटे दाने निकाल आते हों, या
संक्रमण से गला दुखता रहता हो, या बार बार मुह में छाले पड़ जाते हों, अनुलोम-विलोम प्राणायाम
इन सभी तकलीफ़ों से लड़ने में मददगार होता है।
शास्त्रों में अनुलोम-विलोम प्राणायाम को त्रीदोष नाशक भी बताया गया है। पित्त रोग, वात रोग, और
गले के कफ की समस्या, इन तीनों कष्टदायी रोगों के विकार अनुलोम-विलोम प्राणायाम के नित्य
अभ्यास से दूर हो जाते हैं।
अनुलोम-विलोम प्राणायाम हार्ट के ब्लोकेज को भी दूर कर सकता है। यानी की ह्रदय रोग से पीड़ित
व्यक्ति भी इस प्राणायाम के नित्य अभ्यास से लाभ ले सकते हैं। (Note – हृदय रोग से पीड़ित
व्यक्ति डॉक्टर की सलाह ले कर ही, अनुलोम-विलोम प्राणायाम का प्रयोग करें।)
Benefits of Anulom Vilom Pranayama-
अनुलोम-विलोम प्राणायाम मूत्रमार्ग के सभी रोगों को दूर करने में सहायक होता है। अगर किसी
पुरुष को शुक्राणुओं की कमी हो तो अनुलोम-विलोम व्यायाम से यह समस्या दूर हो सकती है।
जोड़ों के दर्द, गठिया रोग, अमली पित्त, शीत पित्त और कम्पवात जैसी कष्टदायक बीमारियों में भी
अनुलोम-विलोम प्राणायाम राहत प्रदान करता है। अगर रोगी इस प्राणायाम को सही तरीके से लंबे
समय तक करता रहे ऊपर बताए जटिल रोग जड़-मूल से खत्म भी हो सकते हैं।
अनुलोम-विलोम प्राणायाम से अस्थमा और साइनस नाम के रोग भी दूर हो सकते हैं। शरीर के
स्नायुओं की दुर्बलता दूर करने के लिए भी अनुलोम-विलोम प्राणायाम करना उत्तम होता है।