माँ एक सुखद अनुभूति है। वह एक शीतल आवरण है जो हमारे दुःख, तकलीफ की तपिश को ढँक
देती है। उसका होना, हमें जीवन की हर लड़ाई को लड़ने की शक्ति देता रहता है। सच में, शब्दों
से परे है माँ की परिभाषा।
माँ शब्द के अर्थ को उपमाओं अथवा शब्दों की सीमा में बाँधना संभव नहीं है। इस शब्द की गहराई,
विशालता को परिभाषित करना सरल नहीं है क्योंकि इस शब्द में ही संपूर्ण ब्रह्मांड, सृष्टि की उत्पत्ति
का रहस्य समाया है। माँ व्यक्ति के जीवन में उसकी प्रथम गुरु होती है, उसे विभिन्ना रूपों-स्वरूपों
में पूजा जाता है। कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में मातृ ऋण से मुक्त नहीं हो सकता। भारतीय
संस्कृति में जननी एवं जन्मभूमि दोनों को ही माँ का स्थान दिया गया है।
मानव अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति जन्मभूमि यानी धरती माँ से, तो जीवनदायी
आवश्यकता की पूर्ति जननी से करता है। मनुष्य
माँ अनंत शक्तियों की धारणी होती है। इसीलिए उसे ईश्वरीय शक्ति का प्रतिरूप मानकर ईश्वर के सदृश्य माना गया है। माँ के समीप रहकर उसकी सेवा करके, उसके शुभवचनों, शुभाशीष से जो आनंद प्राप्त किया जा सकता है वह अवर्णनीय है |
से लेकर पशु एवं पक्षियों तक को आत्मनिर्भर, स्वावलंबी एवं कुशल बनाने के लिए उनकी माँ उन्हें
स्वयं से अलग तो करती है परंतु उनकी सुरक्षा के प्रति हमेशा सचेत रहकर अपने ममत्व को बनाए
रखती है। परंतु ठीक इसके विपरीत कई बार मानव स्वयं अपने बढ़ते बुद्धि विकास के कारण
अपनी सुरक्षा एवं आवश्यकता के प्रति स्वार्थी होकर माँ और उसकी ममता के प्रति उदासीन हो
जाता है। फिर वह अपनी पूर्ति के लिए जननी और जन्मभूमि दोनों का दोहन तो करता है परंतु
उनके प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करना भूल जाता है। जो व्यक्ति अपने इन कर्तव्यों का पालन
करता है वो स्नेह, ममत्व की छाँव में रहकर सद्गुण, संस्कार, नम्रता को प्राप्त करता है। वह अपने
जीवन में समस्त सुखों और जीवन लक्ष्यों को प्राप्त कर ऊँचाइयों को पा लेता है। वहीं ऐसे व्यक्ति जो
अपने कर्तव्यों के निर्वहन में मातृशक्ति को, उसके स्नेह, ममत्व को उपेक्षित कर उन्नति का मार्ग
ढूँढने का प्रयास करते हैं, वे जीवन भर निराशा के अलावा कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाते।
माँ!
इससे अधिक एक शब्द की ज़रूरत नहीं। ईश्वर की सबसे प्यारी रचना है माँ।
मुनव्वर रानासाहब की कुछ पंक्तियां उधार लेना चाहुंगा
मैंने कल शब चाहतों की सब किताबें फाड़ दीं
सिर्फ़ इक काग़ज़ पे लिक्खा लफ़्ज़—ए—माँ रहने दिया।कुछ नहीं होगा तो आँचल में छुपा लेगी मुझे
माँ कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी
माँ दुनिया का एकमात्र ऐसा शब्द है, जिसे किसी परिभाषा की ज़रूरत नहीं। क्योंकि यह शब्द नहीं एहसास है।
ईश्वर की एक शब्द में व्याख्या कीजिए?
ब्रह्माण्ड की एक शब्द में व्याख्या कीजिए?
जीवन की एक शब्द में व्याख्या बताइए? क्या है जीवन ?
अच्छा कोशिश कीजिए मृत्यु को एक शब्द में बताने की ?
माँ तो इन सब का स्त्रोत है, तो फिर कैसे एक शब्द में ये वर्णन योग्य माना जा सकता है ।
माँ ही जीवन का आधार है।
माँ का ही दूसरा रूप प्यार है।।
माँ ही रोती आँखो में हँसता निखार है।
माँ का ही दूसरा रूप संसार है।।
रंग जाती है पूरी की पूरी उस एक ही रंग में ,
मां खेत में हो तब धानी और मंदिर में सिंदूरी लगती है ।
सुरभि
एक बार मां को पूजाघर में तल्लीनता से पूजा करते हुए देख रही थी ,तब यह अल्फ़ाज़ दिल से निकले ।
मां जिस मनोयोग से ,रमी हुई सी कोई काम कर रही हो,वही मनोयोग मां के व्यक्तित्व को व्यक्त करता है ।
मां में मैंने कभी कोई अधीरता नहीं देखी , शांत ,निश्छल ।इस हद तक कि कभी कभी ख़ुद पर शर्मिंन्दगी होती है ,उन मौकों को याद कर के जब कि मैंने आवेश में आकर मां को कुछ कहा ।
तब बस आंखों की कोर से निकले आंसू प्रमाण होते हैं अपनी धृष्टता पर लज्जित होने के जैसे कि अभी हैं यह सब लिखते हुए ।
मां की व्याख्या एक शब्द में शायद नहीं किया जा सकती है! मां में एक साथ बहुत सारी खूबियां मौजूद होती है -ममता, प्यार , पवित्रता ,त्याग , ज्ञान , कर्तव्य , समर्पण इत्यादि।
मां को शब्दों में नहीं व्यक्त किया जा सकता है अर्थात मां अनमोल है।
मां प्रेम का एक बहता हुआ स्त्रोत है।
माँ तुम समुद्र सी जान पड़ती हो।
हृदय विशाल, करुणा की मूरत, स्नेह से संपूर्ण, ममतामयी।
समुद्र के सामान माँ भी परिस्थितियों से विचलित नहीं होती।
परस्पर अनुकूल और विपरीत परिस्थितयों के अनुसार ढल जाती है।
समुद्र की भांति माँ के अंतर्मनन में बसें है अनगिनत बहुमूल्य उपहार।
जो समय-समय पर तुम हम पर न्योछावर करती आयी हो।
माँ एक ऐसा शब्द है जिसकी व्याख्या करना लगभग असंभव हैं । एक शब्द तो क्या, शायद एक
महापुराण भी छोटा पड़ जायेगा । फिर भी कोशिश करें तो शायद इन तीन शब्दों में से किसी एक
को चुन सकते है । ये तीन शब्द हैं : ममता, वात्सल्य, निःस्वार्थ ।
माँ की ममता और वात्सल्य निःस्वार्थ होते हैं । यूं तो हर किसी ने इसे महसूस किया हैं लेकिन
समझने की कभी कोशिश नहीं की क्योंकि माँ कभी भी अपने उपकारों का, अपने प्यार का, अपने
त्याग का और कष्टों का न तो कभी अहसान जताती है और न ही कभी इसका मूल्य मांगती है ।
यहाँ नीचे एक टर्की की कहानी के अंग्रेजी रूपान्तर से हिन्दी में किया गया एक कच्चा पक्का
अनुवाद है. भाषा की कमजोरी और उलझे हुए शब्दों पर ध्यान न दें, बस इसकी भावना को समझने की कोशिश करें.
यह खुद को जन्म देने की मेहनत होती है! प्यार की वह खूबसूरत मां आपको अपने गर्भ से नीचे
उतार कर छोड़ देती है जिसे कि उसने कसकर पकड़ लिया है। वह एक ऐसी मां है कि अगर वह
हमें दूध नहीं पिलाती है, तो हम नष्ट हो जाएंगे। हमारे नन्हे से बच्चे के तेजी से धडकते दिल तक खून
कैसे पहुँच जाता है? हम अपने पैरों को मां के आँचल में कैसे हिलाते हैं? हमारे हाथ उसके दयालु
बालों को कैसे छूते हैं?
अगर उस मां को जिसे प्यार कहा जाता है और वह हमसे दूध छुड़ा देती है और हमें बताती हैं कि
‘आप पहले से बड़े हो गए हैं, चलो एक कदम उठाएं’, हम बहुत दुखी होंगे। हम जिद करके
स्तनपान करना चाहते हैं। जब तक वह हमारे हाथ नहीं पकड़ कर रखती है तब तक हम कैसे चल
सकते हैं? अंधेरा हमें डराता है जब तक वह हम पर मुस्कुराती नहीं है और हमारे सिर को सहलाती
नहीं है।
दुख हमें डराता है, यह सभी परेशानियों की शुरुआत है। खून, गंदगी, उल्टी और मूत्र में इंतजार
करने के अलावा हम और कुछ कर भी क्या सकते हैं जब तक कि करुणा की गेंद जिसको प्यार
करने वाली मां कहते हैं, हमें शुद्ध नहीं करती है और हमें साफ पानी में धो नहीं लेती है? न तो हमारे
आँसू रुकते हैं और न ही हम अच्छी तरह सो सकते हैं।
कभी-कभी प्यार की मां उसके अपने सिर को दूसरी तरफ घुमा देती है, सूरज उसके सुंदर चेहरे पर
नहीं छूता है; हम अकेलापन गले लगा लेते हैं; या हम सुंदर महिलाओं अथवा आकर्षक पुरुषों को
प्यार की मां की गोद / अंचल मानने की गलती कर लेते हैं। जो कुछ भी होता है, जो भी हम पकड़
लेते हैं, वह केवल पीड़ा को हमारी तरफ उड़ाता है। फिर भी, भगवान का शुक्र है, प्यार की सुंदर मां
हमें गहरी नींद के दौरान रात के अंधेरे में दूध पिलाती है। प्यार की मां सोने में असमर्थ होती है।
अगर उसका बच्चा भूख के चेहरे के साथ इधर उधर घूमता है जैसे कि वह किसी रेगिस्तान में है।
हम सुबह तक उसके स्वच्छ स्तन के दूध से अपना पेट भरते हैं। अगर वह चाहती है …
ममता।
हर समय माँ अपने बच्चों के लिए कुछ भी काम करने को तैयार रहती है।
विवाहित बेटे को भी आधी रात को खाना बनाकर देने में परेशान नहीं होती।आजकल तो माँ का योगदान और बढ़ गया है।
बच्चों की शिक्षा दीक्षा से लेकर उनके लिए ईमेल लिखने में भी वह माहिर हो गई है।
सच ही कहा गया है :
ईश्वर सब जगह साक्षात् रूप में नहीं रह सकता था,इसलिए उसने माँ को बनाया।
माँ – पिता ये दो खून के रिश्ते हमारे चाल, चरित्र, और चाहत का आधार होते है जैसे किसी मकान की नींव ही उस मकान का भविष्य होती है
मैं इन दो खून के रिश्तों को अपने विचार से 2 पंक्तियों में व्यक्त करता हूँ
पिता- “पिता वो है जो आप का दुनिया से परिचय करवाता है”
माँ- “माँ वह है जो आप का आप से परिचय करवाती है”
‘माँ’ के ममत्व से पुष्पित होता हमारा जीवन,
माँ के अस्तित्व से वजूद बनता हमारा।
गहरे होते रिश्ते-नाते-परिवार मजबूत बनाकर रखती माँ ।
माँ,अहर्निश चिंतन करते-करते-थकान उतारने ज्यों गई बिस्तर पर
त्यों कुछ काम फिर वह निपटाती।
अब तो तनिक दम भर ले माँ!
यम देव से देखा न गया-
तारों से जड़ी बड़ी रथ लेकर आये और
मेरी माँ को मान के साथ लेकर चले गए।
“माँ “शब्द स्वयं में एक महामंत्र हैं।
कोटि-कोटि नमन माँ!
सम्पूर्ण
एक शब्द में माँ की व्याख्या करने में किसीको कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। माँ सम्पूर्ण है।
अनंत ब्रह्मांड में सबसे संपूर्ण सूख है माँ।
हर दुख का संपूर्ण विनाश है माँ।
प्यार में और बलिदान में संपूर्ण है माँ।
भगवान से भी संपूर्ण,
दानव के सामने सम्पूर्ण दुर्गा है माँ।
त्याग !
हाँ, यही व्याख्या ठीक रहेगा।
क्योंकि माँ का स्वरूप लेते ही, एक स्त्री, अपने संतान की मन की इच्छाओं के आगे अपनी सारी इच्छाओं का त्याग कर देती है।
कैसे?
यह भी लिख के बताना होगा!
सर्वे भवन्तु सुखिनः!!
माँ
यह एक शब्द स्वयं की ही व्याख्या है
यह एक शब्द ही काफ़ी है अनंत प्रेम को परिभाषित करने को
यह एक शब्द ही स्वयं में एक कविता है, छंद है ,अलंकार है
यह एक शब्द ही निःशब्द भावना है
चर-अचर क्षर अक्षर इन सबसे परे है यह शब्द
इस शब्द के लिए किसी भाषा लिपि की जरूरत नही
जन्म लेते ही होठों पे पहला शब्द है ये माँ
इस शब्द को मैं महसूस तो कर सकता हूँ पर पर किसी भाषा मे लिखके पढ़कर उसे व्यक्त नहीं कर सकता ।
ईश्वरसे हमे मागनेवाली,ईश्वरसे हमे बारबार अवगत करानेवाली मा ही तो है।बारबार इसलिये की बहोत देर तक वो अनदेखा ईश्वरके बारेमे बताती तो हमारे जहनमे मा ही उभरती।अपने हिस्से का हमारे नाम का पिछवाड़ा पिता के और हमारे प्रणाम का अगवाडा परम पिता के नाम करनेवाली मा की व्याख्या करने मे अभी तो जमीन ही नापी है मेने,उडनेको अभी आसमान बाकी है।
“मैं बहुत सीमित हूँ,
अपने शब्दों में।।
लेकिन बहुत विस्तृत हूँ,
अपने अर्थों में।।
कभी सिर तो कभी पाँव,
अपने ढंकता हूँ।।
छोटी सी चादर
उम्मीदें बड़ी रखता हूँ।।