यह जानना क्यों ज़रूरी है?
अगर दुनिया को किसी ने नहीं बनाया, तो इंसान के जीने का कोई मकसद नहीं। अगर दुनिया को किसी ने बनाया है तो हमें ज़िंदगी और भविष्य से जुड़े सवालों के सही जवाब मिल सकते हैं।
आप क्या करते?
ज़रा सोचिए: ऐलक्स बड़ी कशमकश में है। वह हमेशा से यही मानता आया है कि एक परमेश्वर है जिसने यह दुनिया बनायी है। मगर आज विज्ञान का टीचर पूरे यकीन के साथ सिखा रहा है कि विकासवाद की शिक्षा सही है और खोजबीन करने पर इसके पक्के सबूत भी मिले हैं। ऐलक्स नहीं चाहता कि सब उसका मज़ाक उड़ाएँ इसलिए वह मन-ही-मन कहता है, ‘अगर वैज्ञानिक साबित कर चुके हैं कि दुनिया अपने आप आयी है, तो मैं कौन होता हूँ उन्हें झूठा साबित करनेवाला?’
अगर आप ऐलक्स की जगह होते, तो क्या आप विकासवाद पर यकीन करते, वह भी सिर्फ इसलिए कि ऐसा स्कूल की किताबों में लिखा है?
थोड़ा रुककर सोचिए!
चाहे लोग इस शिक्षा को मानें या न मानें, वे जल्दी से यह तो बता देते हैं कि वह क्या मानते हैं, मगर उन्हें यह नहीं पता होता कि क्यों मानते हैं।
- दुनिया को बनाया गया है, कुछ लोग यह इसलिए मानते हैं क्योंकि उन्हें चर्च में यही सिखाया जाता है।
- दुनिया अपने आप बन गयी, कुछ लोग यह इसलिए मानते हैं क्योंकि उन्हें स्कूल में यही सिखाया जाता है।
इन 6 सवालों के बारे में सोचिए
शास्त्र कहता है, “हर घर का कोई न कोई बनानेवाला होता है, मगर जिसने सबकुछ बनाया वह परमेश्वर है।” (इब्रानियों 3:4) क्या आपको लगता है यह सच है?
दावा: अचानक एक ज़ोरदार धमाका हुआ और दुनिया अपने आप बन गयी।
1. यह धमाका किसने किया और यह किस वजह से हुआ?
2. किस बात में ज़्यादा तुक है—शुरू में कुछ नहीं था फिर सबकुछ अपने आप बन गया, या कोई तो था जिसने सबकुछ बनाया?
दावा: इंसान बंदरों से आया।
3. अगर इंसान जानवरों से आया जैसे बंदर से, तो फिर क्यों इंसान और बंदर के दिमाग में इतना फर्क है?
4. क्यों छोटे-से-छोटे जीव की भी बनावट इतनी अनोखी है?
दावा: विकासवाद के पक्के सबूत हैं।
5. विकासवाद का दावा करनेवालों ने क्या खुद इन सबूतों की जाँच की है?
6. क्या आप जानते हैं कि ऐसे कितने लोग हैं जो विकासवाद पर सिर्फ इसलिए यकीन करते हैं क्योंकि उन्हें बताया गया है कि सभी अक्लमंद लोग इसे मानते हैं?
“जंगल से जाते वक्त अगर आपको एक सुंदर-सा घर दिखायी दे, तो क्या आप यह सोचेंगे, ‘अरे वाह! कितना सुंदर घर है। पेड़ अपने आप कटकर आड़े-तिरछे गिरे और यह घर बनकर तैयार हो गया।’ कितनी बेतुकी सी बात है, ऐसा हो ही नहीं सकता! तो हम यह कैसे मान लें कि दुनिया में सबकुछ अपने आप बन गया?”—जूलिया।
“ज़रा सोचिए, कोई आपसे कहता है कि इंक की फैक्टरी में धमाका हुआ और दीवारों और छतों पर इंक इस तरह जा गिरी कि अपने आप हज़ारों शब्द बन गए। क्या आप यकीन करेंगे?”—ग्वेन।
भगवान पर विश्वास क्यों करें?
शास्त्र बढ़ावा देता है कि आप “अपनी सोचने-समझने की शक्ति का इस्तेमाल” करें। (रोमियों 12:1) इसका मतलब आपको भगवान पर सिर्फ इसलिए विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि
- आपका दिल कहता है (मुझे लगता है कि दुनिया को चलानेवाली कोई तो शक्ति ज़रूर है)
- लोग ऐसा कहते हैं (मैं धार्मिक लोगों के बीच रहता हूँ)
- और कोई चारा नहीं (घरवालों ने मुझे बचपन से यही सिखाया है)
आप जिस बात पर विश्वास करते हैं, उसके ठोस सबूत आपके पास होने चाहिए।
“जब क्लास में टीचर समझाती है कि हमारा शरीर कितने बेहतरीन तरीके से काम करता है तो परमेश्वर के वजूद पर मेरा विश्वास और पक्का हो जाता है। शरीर के सब अंग अपना-अपना काम करते हैं, छोटे-से-छोटा काम भी और हमें पता भी नहीं चलता। हमारे शरीर की बनावट ऐसी है कि हम देखकर दंग रह जाते हैं!”—टेरीसा।
“जब मैं ऊँची-ऊँची इमारतों, बड़े-बड़े जहाज़ों या किसी कार को देखता हूँ तो खुद से पूछता हूँ, ‘इन्हें किसने बनाया?’ अगर हम एक कार को ही लें, तो इसे बनाने के लिए भी दिमाग की ज़रूरत है। कार तभी चल पाएगी जब उसका छोटे-से-छोटा पुरज़ा भी सही तरह काम करेगा। अगर कार को किसी ने बनाया है, तो इंसान को बनानेवाला भी कोई-न-कोई ज़रूर है!”—रिचर्ड।
“जितना ज़्यादा मैं विज्ञान पढ़ता गया, विकासवाद की शिक्षा मुझे उतनी ही बेबुनियाद लगने लगी। . . . मैं तो यह कहूँगा कि जितना मेरे लिए भगवान पर विश्वास करना आसान है, उतना ही मुश्किल विकासवाद पर यकीन करना है।”—एन्थनी।
ज़रा सोचिए
वैज्ञानिक विकासवाद के बारे में बरसों से खोजबीन कर रहे हैं, फिर भी वे आपस में सहमत नहीं हैं। वे अब तक ऐसा सबूत नहीं दे पाए जिस पर सब राज़ी हों। जब बड़े-बड़े वैज्ञानिक ही इस बारे में सवाल उठा रहे हैं, तो आप क्यों नहीं उठा सकते?